संघर्ष के बीज (Sangarsh Ke Beej) - Moral Story


एक दिन किसान दुखी होकर मंदिर में जा पहुंचा और भगवान की मूर्ती के आगे खड़ा हो कर कहने लगा भगवान बेशक आप परमात्मा है लेकिन फिर भी लगता है आपको खेती बाड़ी की जरा भी जानकारी नहीं है । कृपया करके एक बार बस मेरे अनुसार मौसम को होने दीजिये फिर देखिये मैं कैसे अपने अन्न के भंडार को भरता हूँ । इस पर आकाशवाणी हुई कि ” तथास्तु वत्स जैसे तुम चाहोगे आज के बाद वेसा ही मौसम हो जाया करेगा और ये साल मेने तुमको दिया ।” किसान बड़ा ख़ुशी ख़ुशी घर आया ।
क्या होता है कि उस बरस भगवान ने कुछ भी अपने अनुसार नहीं किया और किसान जब चाहता धुप खिल जाया करती और जब वो चाहता तो बारिश हो जाती लेकिन किसान ने कभी भी तूफान को और अंधड़ को नहीं आने दिया । बड़ी अच्छी फसल हुई । पौधे बड़े लहलहा रहे थे । समय के साथ साथ फसल भी बढ़ी और किसान की ख़ुशी भी ।
आखिर फसल काटने का समय आ गया किसान बड़ी ख़ुशी से खेतों की और गया और फसल को काटने के लिए जैसे ही खेत में घुसा बड़ा हेरान हुआ और उसकी ख़ुशी भी काफूर हो गयी क्योंकि उसने देखा कि गेंहू की बालियों में एक भी बीज नहीं था । उसका दिल धक् से रह गया । किसान दुखी होकर परमात्मा से कहने लगा ” हे भगवन ये क्या ?”
तब आकाशवाणी हुए कि ” ये तो होना ही था वत्स तुमने जरा भी तूफ़ान आंधी ओलो को नहीं आने दिया जबकि यही वो मुश्किलें है जो किसी बीज को शक्ति देता है और वो तमाम मुश्किलों के बीच भी अपना संघर्ष जारी रखते हुए बढ़ता है और अपने जैसे हजारों बीजो को पैदा करता है जबकि तुमने ये मुश्किले ही नहीं आने दी तो कैसे बढ़ता ये बताओ तुम ?”  भगवान ने कहा बिना किसी चुनोतियों के बढ़ते हुए ये पौधे अंदर से खोखले रह गये । यही होना था ।
यह सुनकर किसान को अपनी गलती का अहसास हुआ । जिन्दगी में जब तक बाधाएं नहीं आती तब तक मनुष्य को खुद की काबिलियत का भी अंदाजा नहीं होता कि वो कितना बेहतर कर सकता है जबकि अगर बाधायों से पार जाने के लिए वो अपनी जी जान लगा दे तो मंजिल कंही अधिक दूर नहीं होती ।

1 comments:

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